एक सुबह को कुछ गुनगुना रहा था ..........................सोचा लिख लूँ .....शायद आपको पसंद आए........
नज़्म तेरी बनकर तेरे होंठो पे आऊँगा ,
प्यार का गीत बनकर फिजा में छा जाऊंगा ।
भुला न पाओगे चाह कर भी मुझको,
अपने वजूद का हर घड़ी अहसास करा जाऊंगा ।
अपनी हर साँस की आहट पे,
नज़रों को मेरी खुला ही पाओगी ।
मेरी कब्र के हर इक कोने पे,
अपनी यादों के चिरागों को जला पाओगी ।
और आएगी उन फिजाओं में वो खुशबू ,
जिसकी तलबगार तुम होना ज़रूर चाहोगी ।
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