Friday, May 1, 2009

तेरा साया .........

एक सुबह को कुछ गुनगुना रहा था ..........................सोचा लिख लूँ .....शायद आपको पसंद आए........


नज़्म तेरी बनकर तेरे होंठो पे आऊँगा ,
प्यार का गीत बनकर फिजा में छा जाऊंगा ।

भुला न पाओगे चाह कर भी मुझको,
अपने वजूद का हर घड़ी अहसास करा जाऊंगा ।

अपनी हर साँस की आहट पे,
नज़रों को मेरी खुला ही पाओगी ।

मेरी कब्र के हर इक कोने पे,
अपनी यादों के चिरागों को जला पाओगी ।

और आएगी उन फिजाओं में वो खुशबू ,
जिसकी तलबगार तुम होना ज़रूर चाहोगी ।

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