Thursday, April 30, 2009

वो गलियाँ ............

लिखने की शुरुआत अचानक ही हुई थी.........................................................
ऐसे ही सच में ........................................................वाकई अचानक , किसी विधा के तकनीकी पहलुओं को ध्यान में रख कर कुछ नही लिखा। मन के आड़े - तिरछे विचारो को एक शकल देने की कोशिश सी कर पाया हूँ l



जाते ही उन गलियों में तेरी यादें सताती हैं ,
ज़हां मिले थे कभी जुदा होने को हम ।

अश्क के जाम छलकने लगते हैं आखों से ,
साकी तेरी हँसी जब बन जाती है ।

दर्द बढ़ा देता है वो हर एक पल ,
साथ हँस कर जो गुजारा था हमने ।

छूता है जब भी हवा का झोंका मुझको ,
तेरे मखमली हाथों का छू जाना याद आता है ।

दिखता है झील में चमकता चाँद जब भी,
तेरा हया से मुस्कुराना याद आता है ।

और गूंजता है उन फिजाओं में मेरा इज़हार अब भी,
मुझे तेरे ज़वाब का अब तलक इंतजार है ..........................