Monday, August 9, 2010

लौट आओ ........इंसान ...

दूर तक जाना मुझे है अँधेरा भी घना
आकर मुझे रौशनी दिखाओ हो तुम कहाँ ।

साँसे रुक गयी यहाँ इंसानियत है मर चुकी ,
इन जिंदा लाशों को दफ़न कर आओ कहीं ।

खो गया है ना जाने वो मकान कहाँ ,
जिससे निकल कर आते थे इंसान यहाँ

ना जाने कहाँ चली गयी हैं वो मोहब्बत की बातें ,
चलो चलकर उन्हें फिर से ढूंढ के लायें यहाँ

Tuesday, February 2, 2010

तलाश - फिर से जीने के लिए .......

कुछ खो जाए तो उसे ढूंढना ही पड़ता है.. अगर वो आप खुद हों ...तो निहायत ही ज़रूरी....टूटे दिलों की तलाश अक्सर लम्बी हो जाती है...............खुद को फिर से ढूंढ लेने के लिए ...... जीने के लिए ................... आखिर मरने तक जीना भी...मौत जितनी बड़ी सच्चाई है.......आप क्या सोचते हैं ?


गुमशुदा सा है कुछ मुझे जिसकी तलाश है ,
खो बैठा हूँ खुद को फिर पाने की आस है ।

निशाँ भी नहीं बाकी ज़हाँ से कारवां चला था ,
मुझको इस बहते दरिया में साहिल की आस है ।

कैसे कहूं कि मैं वो ज़ज्बात चाहता हूँ ,
मुझे तो बस उन अहसासों की आस है ।

तन्हा सा है "रकाब" इक ख्वाब की तलाश है ,
फिर से जीने के लिए एक वजह की आस है ।