दूर तक जाना मुझे है अँधेरा भी घना
आकर मुझे रौशनी दिखाओ हो तुम कहाँ ।
साँसे रुक गयी यहाँ इंसानियत है मर चुकी ,
इन जिंदा लाशों को दफ़न कर आओ कहीं ।
खो गया है ना जाने वो मकान कहाँ ,
जिससे निकल कर आते थे इंसान यहाँ ।
ना जाने कहाँ चली गयी हैं वो मोहब्बत की बातें ,
चलो चलकर उन्हें फिर से ढूंढ के लायें यहाँ ।
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